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"क़ायनात से परे" !

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सुना है क़ायनात से परे

एक जहान और भी है।

जहां कोई मज़हब नहीं ।

कोई तू नहीं, कोई मैं नहीं...

बस, वो पोशीदा रहा करता है

उस पार..

मेरे मौला,

न जाने क्यों चुप हो गिराजानी देखकर

माना, चश्मदीद हैं आपके

माह-औ-खुर्शीद हर वक्त

हर हिसाब रखा करते हैं अक्सर

फिर क्यों नक़ाबपोशों को कोई

सज़ा नहीं देते?

कितने ही रंगों से रंगे चेहरे

परत-दर-परत रंगदार हैं,

नावाक्फि हैं असल से।

खैर, चेहरे तो सिर्फ आईना हैं

सिर्फ चेहरों से कोई फैज़ नहीं

बात तो तब की जाए...

ग़र चेहरे रंग बदलना छोड़ दें।

ये दुनियां तो आतिश-ए-दोज़ख है

ये क्या जानें दीद-ए-ख़ूनाबफिसां?

तुम कहो तो सच कह दूं?

छोड़ दूं नक़ाबपोशों की दुनियां

और..

लौट चलूं अपने देस

उसके हसरत-ए-दीदार को

जहा कोई नक़ाबपोश नहीं

कोई धोखा नहीं

कोई साजिश नहीं

बस मैं...

और दूर-दूर तक

बहिशत की ओर

ले जाती

रोशनी ही रोशनी...!

रोशनी ही रोशनी...!

By Dainik Guruji

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